- ''मैं एक संवेदनशील, सादे विचार वाला, सरल, सेवानिवृत व्यक्ति हूँ। मुझे अपनी मातृभाषा हिंदी पर गर्व है। आप सभी लोगों का स्नेह प्राप्त करना तथा अपने अर्जित अनुभवों तथा ज्ञान को वितरित करके आप लोगों की सेवा करना ही मेरी उत्कृष्ट अभिलाषा है।''
आपकी हिन्दी के प्रति उत्कृष्ट अभीलाषा आपके ब्लाग के नाम से बगैर चश्मे के भी दिखाई देती है,
श्री अवधिया जी में को मी लिखवाने का प्रचलन चाहते हैं,
इस हिन्दी के दुशमन के प्रति नर और नारीयां एवं किन्नर भी विरोध दरज करवाने के लिये सादर आमंत्रित हैं,
अगर आज में को मी प्रचलित करवाने वाले का विरोध ना किया गया तो कल कोई अलबेला को अलबेली अर्थात अलबेली छतरी प्रचलित कर सकता है,
सांकल खुली है
आपका अवधिया चाचा
आप जो भी हैं, जरा बुर्के से बाहर तो निकलिये तब पता चले कि किस "अक्ल" वाले के यहाँ हम टिप्पणी करने जा रहे हैं… तब तक कोई फ़ायदा नहीं… नमस्ते…। हिन्दी की दुहाई देने वाले आपने भी - "अभीलाषा, दुशमन, दरज" जैसी उत्कृष्ट हिन्दी लिख रखी है… इससे पता चलता है कि आपका स्तर कम से कम अवधिया जी से तो बहुत ही नीचे का है…। बहरहाल, सांकल तो खोली है, घूंघट भी उठाओ और हिम्मत है तो बताओ कि आप कौन हो… :) :)
ReplyDelete@ chiplunkar saain, phool khusboo deta he naam jo bhi rakh lo.
ReplyDelete@mahan chiplunkar- ko koi bataye ke ham batayen,,, mein to truti door kar sakta hoon,,,daada kese karenge. me ko men ,,
ReplyDeleteवाह भैया। चच्चा भी बन गए, पहचान भी छिपा ली। ये लुका-छिपी का खेल जाखड़ खेलना पसंद नहीं करता। खुलकर खेलें। वर्ना जो कहोगे उसमें मजा भी न आएगा। शेष आपकी मर्जी।
ReplyDeleteआप अनुभवी हो, बस नादान बनने की कोशिश कर रहे हो। इसीलिए वर्ड वेरिफिकेशन जैसी चीज आपने नहीं हटाई। सही खेल रहे हो चच्चा।
@ प्रवीण भैया,वह भूल के कारण रही खिडकी भी खोल दी,
ReplyDeleteइस ब्लाग के मकसद को हमार अवधिया दादा समझे हैं,अवधिया दादा सबके चाचा बन गये, परन्तु अपने ब्लाग मेंme मी को मैं men कैसे करेंगे, आप कहें तो दीवीली मुबारक में उन्हें यह ब्लाग दे दिया जाए,
सबका अवधिया चाचा, जिसने कभी अवध ना देखा
wah chacha wah....
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